Wednesday, January 15, 2025

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भारत में कृषि मशीनीकरण और सरकारी योजनाएं | Agricultural Mechanization In India

agricultural mechanization in India in hinid: भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि (agriculture) का अहम योगदान है। विश्व बैंक की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ग्रामीण लोगों की आबादी लगभग 65.97% है। भारत के गांवों में रहने वाले ये लोग आज भी मुख्य रूप से कृषि पर ही निर्भर हैं।

भारत में प्राचीनकाल में परंपरागत रूप से कृषि कार्य होता था, लेकिन पिछले कुछ दशकों में तकनीकी और प्रौद्योगिकी विकास ने खेती के स्वरूप को बदल दिया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि पिछले कुछ दशकों में भारतीय किसान (indian farmer) खेती करने के लिए परंपरागत और अकुशल औजारों के स्थान पर नए और विकसित कृषि यंत्रों जैसे खेत की जुताई के लिए ट्रैक्टर(tractor), बिजली से चलने वाले सिंचाई यंत्र, फसल काटने के लिए हारवेस्टर्स जैसी मशीनों का उपयोग कर रहे हैं। इससे उत्पादकता पहले के मुक़ाबले कई गुना बढ़ी है।भारत में पहले से ही खेती बैल, अन्य जानवरों या मानव श्रम द्वारा की जाती रही है, लेकिन मशीनीकरण ने खेती को आधुनिक स्वरूप प्रदान करने में बड़ी भूमिका निभाई है। कृषि भूमि पर मशीन शक्ति के प्रयोग को दर्शाता है। साधारण शब्दों में कहें तो मशीनीकरण (mechanization) वह प्रक्रिया है, जिसमें मनुष्य या पशुओं की सहायता से किए जाने वाले कार्य को मशीनों द्वारा किया जाता है। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि कृषि मशीनीकरण (agricultural mechanization in hindi), कृषि के आधुनिकीकरण का एक महत्वूर्ण तत्व है।

कृषि मशीनीकरण (agricultural mechanization) न केवल बीज, उर्वरक, पौध संरक्षण रसायन और सिंचाई के लिए पानी के कुशल उपयोग के लिए सक्षम बनाता है, बल्कि यह एक आकर्षक व्यावसायिक खेती बनकर गरीबी उन्मूलन में भी मदद करता है।

कृषि मशीनीकरण के लिए सरकारी योजनाएं (Government Schemes for Agricultural Mechanization)

परंपरागत और पुराने औजारों के स्थान पर नए और विकसित कृषि यंत्रों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा नीतियां और कार्यक्रम बनाए गए हैं। इस वजह से आज के समय में ज़्यादातर किसान खेती करने के लिए मशीनों का उपयोग करने लगे हैं। इसके अलावा कृषि यंत्रों (agricultural machinery) को ख़रीदने के लिए किसानों को सक्षम बनाना और इन मशीनों के परीक्षण, मूल्यांकन और अनुसंधान एवं विकास सेवाओं के लिए आवश्यक मानव संसाधन विकास के प्रयास भी किए जा रहे हैं। साथ ही कृषि मशीनों (agricultural machinery) के निर्माण के लिए एक बड़ा औद्योगिक आधार भी विकसित किया गया है।

गौरतलब है कि भारत के कृषि क्षेत्र (agricultural sector) में प्रौद्योगिकी के विस्तार और मशीनीकरण को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण से वर्ष 2014-15 में कृषि में मशीनीकरण के उप-मिशन (SMAM- Sub-Mission on Agricultural Mechanization) स्माम योजना की शुरुआत की गई है।

यह उप-मिशन कृषि के सतत विकास के महत्वपूर्ण घटकों में से एक है। इसके अंतर्गत प्रशिक्षण, परीक्षण, कृषि मशीनरी (agricultural machinery) और ख़रीद सब्सिडी के पारंपरिक घटकों को शामिल करते हुए उच्च तकनीक आधारित उच्च उत्पादक उपकरण केंद्र एवं फार्म मशीनरी बैंक की व्यवस्था की गई है। इस उप-मिशन के अन्य अवयवों में कृषि कार्यों के माध्यम से उत्पादन में वृद्धि, घाटे को कम करने, महंगे इनपुट के बेहतर प्रबंधन के माध्यम से विभिन्न कृषि कार्यों की लागत को कम करने, प्राकृतिक संसाधनों की उत्पादकता बढ़ाने और विभिन्न कृषि गतिविधियों से संबंधित कठिनाइयों को कम करने आदि को शामिल किया गया है।

वर्तमान में भारत में कृषि मशीनीकरण की स्थिति (Present status of agricultural mechanization in India)

वर्तमान समय में भारत में कुल कृषि मशीनीकरण (agricultural mechanization) लगभग 40-45% ही है। वहीं, अगर संयुक्त राज्य अमेरिका की बात करें तो वहां कृषि मशीनीकरण 95%, ब्राज़ील में 75% और चीन में 57% है। इस तरह हम कह सकते हैं कि कई बड़े देशों के मुक़ाबले भारत में कृषि मशीनीकरण अभी भी काफ़ी कम है।

केंद्रीय बजट 2020 से एक दिन पहले जारी किए गए आर्थिक सर्वे में कहा गया था कि भूमि, जल संसाधन और मज़दूरों में कमी आने की वजह से कृषि में उत्पादन और कटाई के बाद के कार्यों की जिम्मेदारी मशीनीकरण पर ही टिकी हुई है। ऐसे में सर्वे के आधार पर रिपोर्ट में सरकार से कृषि मशीनीकरण को और बढ़ाने के लिए कहा गया।

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, कृषि बिजली और उत्पादन का सीधा संबंध है। इसी को ध्यान में रखकर सरकार ने खाद्यान्न की बढ़ती मांग से निपटने के लिए 2030 के अंत तक 2.02 किलोवाट प्रति हेक्टेयर (2016-17) से 4.0 किलोवाट प्रति हेक्टेयर तक बिजली की उपलब्धता बढ़ाने का फैसला किया है।

सर्वे में यह भी कहा गया है कि कृषि मशीनीकरण के उपयुक्त उपयोग के माध्यम से भारत की छोटी जोतों का बेहतर उपयोग किया जा सकता है। साथ ही यह भी कहा गया है कि एक प्रभावी जल संरक्षण तंत्र सुनिश्चित करते हुए सिंचाई सुविधाओं के विस्तार की आवश्यकता है।

इसके लिए माइक्रो इरिगेशन, जिसमें ड्रिप और स्प्रिंकलर इरिगेशन शामिल हैं, जैसी तकनीक को अपनाया जा सकता है। इस तकनीक को चावल, गेहूं, प्याज, आलू इत्यादि के उत्पादन में अच्छे से इस्तेमाल किया जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, माइक्रो इरिगेशन से 20 से 48 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। इसके अलावा 30 से 40 प्रतिशत तक श्रम लागत और 11 से 19 प्रतिशत तक उर्वरक में बचत होती है। वहीं, लगभग 20 से 38 प्रतिशत तक उत्पादन में वृद्धि होती है।

आर्थिक सर्वे में ये बात भी सामने आई है कि कृषि ऋण के बंटवारे में बड़ी असमानता देखी जा रही है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि उत्तर-पूर्व राज्यों को कुल ऋण का 1% से भी कम ऋण मिला है और पहाड़ी राज्यों का भी लगभग यही हाल है।

सबसे ज्यादा कृषि ऋण की बात करें तो वो केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में दिए गए हैं। इससे यह स्पष्ट है कि जिन राज्यों को कृषि ऋण कम मिला है, उन राज्यों में कृषि का मशीनीकरण ज़्यादा कृषि ऋण मिलने वाले राज्यों से कम हो पाया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि आज भी भारत में कई ऐसे गाँव हैं, जहां अभी भी किसान परंपरागत तरीके से खेती करते हैं।

कृषि में मशीनीकरण के लाभ (Advantages of mechanization in agriculture) Agricultural Mechanization In India

कृषि में मशीनीकरण के उपयोग से कार्य करने की गति के साथ-साथ गुणवत्ता में भी बढ़ोतरी की जा सकती है, जिसके परिणामस्वरूप भूमि की प्रति इकाई क्षेत्रफल की उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है।
कृषि में मशीनीकरण से भूमि का अनावश्यक दोहन, सिंचाई के लिये अनियंत्रित जल उपयोग, उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल, मृदा अपरदन आदि जैसी गंभीर समस्याओं को भी काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।

कृषि में मशीनीकरण के नुकसान (Disadvantages of mechanization in agriculture)

कृषि में मशीनीकरण केवल बड़े आकार के खेतों के लिए ही कारगर है, जबकि यह छोटे आकार के जोतों के लिये वित्तीय भार बढ़ाने का काम करता है। इससे इनपुट की तुलना में कम आउटपुट मिलता है।

कृषि में मशीनीकरण (agricultural mechanization) को बढ़ावा दिए जाने की वजह से भारत जैसे देशों में बेरोज़गारी की समस्या बढ़ी है, क्योंकि इससे कृषि कार्यों में मानवीय संलग्नता काफ़ी कम हो गई है।

मशीनीकरण से पर्यावरण प्रदूषण में इज़ाफा हुआ है, क्योंकि किसान खेतों को जल्दी खाली करने के लिये पराली (पुआल) जलाने लगे हैं।

हालांकि, कृषि में मशीनीकरण के कुछ नुकसान हैं, फिर भी छोटे तथा सीमांत किसानों और बड़े किसानों के बीच समन्वय स्थापित कर कृषि में मशीनीकरण समय की मांग है। जिससे भारतीय परिदृश्य में खेती-किसानी को ‘घाटे का सौदा’ जैसे संबोधन से उबारा जा सकता है।

ये तो थी, भारत में कृषि मशीनीकरण (agricultural mechanization in India) की बात। लेकिन, ताजा खबर online पर आपको कृषि एवं मशीनीकरण, सरकारी योजनाओं और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर भी कई महत्वपूर्ण ब्लॉग्स मिलेंगे, जिनको पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं।

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resource : https://bit.ly/3CmTKvt