mulching techniques in agriculture: क्या आप कम लागत में अधिक पैदावार लेना चाहते हैं? यदि हां… तो आप इसके लिए अपने खेत में मल्चिंग तकनीक का इस्तेमाल जरूर करें।
जैसा कि आप सभी जानते हैं खरपतवार (weed) से फसल को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है। खरपतवार से फसल को बचाने के लिए किसान निराई-गुड़ाई करते हैं लेकिन इस पर बहुत खर्च होता है। इससे सिंचाई की भी आवश्यकता बढ़ जाती है। इसके लिए सबसे सस्ता और अच्छी तकनीक है- मल्चिंग तकनीक से खेती (mulching techniques in hindi)। मल्चिंग तकनीक खरपतवार नियंत्रण और पौधों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने में बेहद कारगर है।
तो आइए, द रुरल इंडिया के इस लेख में जानें-
मल्चिंग क्या है? और मल्चिंग विधि से खेती करने के क्या लाभ होता है?
तो आइए सबसे पहले जानते हैं
मल्चिंग क्या है? (What is mulching?)
खरपतवार और सिंचाई जैसी समस्या से निजात पाने के लिए एक नई तकनीक विकसित की गई है, जिसका नाम है मल्चिंग विधि से खेती। इस विधि में बेड को प्लास्टिक से पूरी तरह कवर कर दिया जाता है, जिससे खेत में खरपतवार न हो।
खेत में लगे पौधों की जमीन को चारों तरफ से प्लास्टिक कवर द्वारा सही तरीके से ढकने को प्लास्टिक मल्चिंग (plastic mulching) कहते है। बेड पर बिछाई जाने वाली कवर को पलवार या मल्च (mulch) कहते हैं।
मल्चिंग खेती के फायदे (Benefits of mulching paper)
- मल्चिंग से मिट्टी में नमी बरकरार रहती है।
- मिट्टी से पानी का वाष्पीकरण नहीं होने पाता है।
- पौधों की वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करती है।
- खेत में मिट्टी के कटाव नहीं होता है।
- खरपतवार से बचाव होता है।
- पौधे लम्बे समय तक सुरक्षित रहते हैं।
- मल्चिंग भूमि को कठोर होने से बचाती है।
- पौधों की जड़ों का विकास अच्छी तरह होता है।
मल्चिंग के प्रकार (types of mulching)
मल्चिंग दो प्रकार की होती है।
- जैविक मल्चिंग (Organic mulching)
- प्लॉस्टिक मल्चिंग (Plastic mulching)
जैविक मल्चिंग में पराली, पत्तों इत्यादि का उपयोग किया जाता है। इसे प्राकृतिक मल्चिंग भी कहा जाता है। यह बहुत ही सस्ती होती है। इसका उपयोग प्रायः जीरो बजट खेती में भी किया जाता है।
किसान भाइयों, आप पराली को न जलाएं बल्कि इसका उपयोग मल्चिंग में करें। मल्चिंग के उपयोग से आपको पराली की समस्या से निजात मिलेगा और उपज भी अधिक मिलेगी।
प्लास्टिक मल्चिंग बाजार में मिलते हैं। यह जैविक मल्चिंग की तुलना में खर्चीली होती है। लेकिन पौधों को पूरी सुरक्षा प्रदान करती है।
बाजार में ये कई प्रकार के मिलते हैं।
- रंगीन मल्चिंग
रंगीन प्लास्टिक मल्चिंग मिट्टी में नमी, खरपतवार से बचाव और भूमि के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करती है। बागवानी फसलों में इस तरह की मल्चिंग का उपयोग ज्यादा होता है।
- दूधिया या सिल्वर मल्चिंग
इस रंग की मल्चिंग भूमि में नमी संरक्षण, खरपतवार नियंत्रण और भूमि का तापमान कम करने में काफी सहायक होती है।
- पारदर्शी मल्चिंग
इस रंग की मल्चिंग को ठंडे मौसम में खेती करने में उपयोग किया जाता है। इस मल्चिंग पेपर से पौधों के जड़ों तक धूप पहुंचती है।
सब्जी और बागवानी फसलों में होता है ज्यादा उपयोग
प्लास्टिक मल्चिंग सब्जियों और बागवानी के लिए काफी फायदेमंद है। इस तकनीक का उपयोग टमाटर, खीरा, करेला, लौकी, पपीता, अनार इत्यादि फसलों के लिए कर सकते हैं।
मल्चिंग बिछाने का तरीका (Method of laying mulching)
अगर आपको मल्चिंग विधि से खेत में सब्जी लगानी है, तो सबसे पहले खेत की अच्छी तरह जुताई कर लें। इसके साथ ही गोबर की खाद मिट्टी में मिला दें। अब खेत में उठी हुई मेड़ यानी बेड बना लें।
इसके बाद ड्रिप सिंचाई की पाइप लाइन को बिछा दें। प्लास्टिक मल्च को अच्छी तरह बिछाकर दोनों किनारों को मिट्टी की परत से अच्छी तरह दबा दें। मल्चिंग पेपर पर गोलाई में पाइप से पौधों से पौधों की दूरी तय कर छिद्र कर दें।
अब यह बीज या पौधा रोपण के लिए पूरी तरह तैयार है।
प्लास्टिक मल्चिंग विधि में लागत (Cost in Plastic Mulching Method) mulching techniques in agriculture
प्लास्टिक मल्चिंग विधि में प्रति हेक्टेयर मल्चिंग लगाने में करीब 32 हजार रुपए का खर्च होता है। प्लास्टिक मल्चिंग का मूल्य बाज़ार में कम या ज्यादा हो सकता है। यह मल्चिंग के क्वालिटी और ब्रांड पर निर्भर करता है।
आपको बता दें, इसके लिए सरकार अनुदान भी देती है। अनुदान लेने के लिए आप जिले के उद्यान अधिकारी या कृषि विज्ञान केंद्र से जरूर करें।
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