Monday, January 13, 2025

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श्री विधि से धान की खेती कैसे करें? यहां जानें sri vidhi se dhan ki kheti:

sri vidhi se dhan ki kheti: किसान भाइयों, हमारे देश में धान की बुआई अनेक पद्धति प्रचलित है। इसमें श्री विधि से धान की खेती (sri vidhi se dhan ki kheti) सबसे अच्छी विधि मानी जाती है। इस विधि में धान की बीजों की बहुत ही कम मात्रा की जरूरत होती है।

इस विधि का उपयोग अधिकतर बिहार, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा आदि राज्यों में अधिक की जाती है। बाजार में संकर बीजों के आ जाने से अब देश के अधिकांश हिस्सों में धान की खेती श्री विधि से की जाने लगी है।

तो आइए इस ब्लॉग में जानें, श्री विधि क्या है?

श्री विधि से धान की खेती sri vidhi se dhan ki kheti

श्री विधि (एसआरआई) धान की खेती करने की एक तरीका है। इस विधि को अफ्रीका में मेडागास्कर के एक पादरी ने 1983 में खोजा था। यह धान की सीधी बुआई से काफी अलग है। इस विधि में बीजों का बहुत ही कम इस्तेमाल करके ज्यादा उत्पादन किया जाता है।

इस विधि में धान की रोपाई पौध से पौध की दूरी 25 सेंटीमीटर होती है। धान की नर्सरी भी पारंपरिक विधि से 10 दिन पहले तैयार की जाती है। गौरतलब है कि इस विधि में धान की नर्सरी लगाने के 8-12 दिनों के बाद ही रोपाई कर दी जाती है।

श्रीविधि में स्वस्थ बीज का होना बेहद जरूरी

श्री विधि से धान की खेती (sri vidhi se dhan ki kheti) में स्वस्थ और उन्नत बीजों का होना बेहद जरूरी है। तभी बेहतर उत्पादन किया जा सकता है। धान की रोपाई से पहले बीज का उपचार करें। क्योंकि बहुत से रोग बीजों से फैलते हैं।

बीज उपचार के लिए आप जैविक या रासायनिक दोनों विधियों का उपयोग कर सकते हैं।

जैविक विधि में पानी में नमक के घोल में बीज को डालकर अच्छी तरह से भिगो लें। जो बीज ऊपर तैरने लगे उसे बाहर निकाल दें क्योंकि वे बीज खराब होते हैं। इन बीजों का इस्तेमाल न करें क्योंकि उनका अंकुरण नहीं होता है।

रासायनिक विधि से बीज को उपचारित करने के लिए 10 ग्राम बाविस्टीन और 1 ग्राम सेप्ट्रोसाइक्लिन जीवाणुनाशी के घोल को 10 लीटर पानी में मिला लें। इस घोल में 5 किलोग्राम बीज को 18 घंटे तक भिगोकर रखें। 18 घंटे बाद बीज को घोल से निकालकर इसे गीली बोरी से ढक दें। इसके बाद जब बीज में सफेद अंकुरण नजर आने लगे तब समझें कि यह बीज नर्सरी में बुवाई के उपयुक्त है।

बीज की मात्रा

  • पारंपरिक विधि में एक एकड़ के लिए 20-25 किलो धान की आवश्यकता होती है। जबकि श्री विधि में केवल 2 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  • श्रीविधि के 6 अनिवार्य स्तंभ
  • पहला- प्रमाणित बीज का उपयोग
  • दूसरा- 8 से 12 दिन नर्सरी,
  • तीसरा- 25 से 25 सेंटीमीटर पर रोपाई करना,
  • चौथा- कोनो वीडर के उपयोग से निराई-गुड़ाई करना,

पांचवा- हल्की सिंचाई

छठा- वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करना

श्री विधि का उपयोग करते समय रखें इन बातों का ध्यान

⚫ श्री विधि में 8 से 12 दिन या कम से कम दो पत्तों के पौधों को लगाया जाता है, इसलिए काफी सावधानी से खेत तक पौधों को ले जाएं। पौधों को मिट्टी समेत सावधानी से उठाएं ताकि जड़ों को कोई नुकसान न पहुंचे।

⚫ पौधों को नर्सरी से निकालते समय परम्परागत विधि जैसे खींचकर न निकाले, कोशिश करें कि पौधों को बड़े बर्तन में रखकर ले जाए अगर टोकरी का इस्तेमाल कर रहे तो उसमें ज्यादा न भरें

⚫ पौधों को नर्सरी से उठाते समय नर्सरी में पानी होना चाहिए, जिससे मिट्टी नरम होती है तथा पौधों को आसानी से उखाड़ा जा सकता है।

श्री विधि के लाभ

  • श्रीविधि से बीज कम लगते हैं
  • एक एकड़ में 2 किलो ही बीज लगता है
  • पानी की जरूरत कम होती है।
  • मजदूर भी कम लगते हैं।
  • खाद एवं दवा कम लगती है।
  • प्रति पौधे कल्ले और बालियों में दानों की संख्या ज्यादा होती है।
  • दानों का वजन और उपज दो गुना ज्यादा होती है।

बीमारियों और कीटों का प्रकोप कम होता है।

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