क्या आपने बाजार में हरे रंग की गोभी बिकते हुए देखा है? आपको यह गोभी बाजार या सुपर मार्केट में जरूर दिख जाएंगे। इस प्रकार की गोभी को ब्रोकली (Broccoli) कहते हैं। इस गोभी की मांग इन दिनों बढ़ती ही जा रही है। यह गोभी पौष्टिकता से भरपूर होती है। किसानों को ब्रोकली का बाजार भाव भी अन्य गोभी से ज्यादा मिलता है।
तो आइए ताजा खबर online के इस ब्लॉग/लेख में ब्रोकली की खेती (brokali ki kheti) कैसे करें, और इसकी खेती में क्या-सावधानियां बरतनी होती है, जानें।
ब्रोकोली की खेती (brokali ki kheti) ठीक फूलगोभी की खेती (Gobhi ki kheti) तरह की जाती है। इसके बीज और पौधे देखने में लगभग फूल गोभी की तरह ही होते हैं। इसे ‘ग्रीन गोभी’ भी कहते हैं।
ब्रोकली की खेती के लिए आवश्यक जलवायु Brokali Ki Kheti
ब्रोकली के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। इसे उत्तर भारत में ठंड से मौसम में उगाया जाता है। हिमाचल प्रदेश , उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर में इनकी खेती साल भर की जा सकती है।
इसके बीज के अंकुरण तथा पौधों को अच्छी वृद्धि के लिए तापमान 20-25 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए इसकी नर्सरी तैयार करने का समय अक्टूबर का दूसरा पखवाडा होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में कम उचाई वाले क्षेत्रों में सितम्बर-अक्टूबर, मध्यम उचाई वाले क्षेत्रों में अगस्त सितम्बर और अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मार्च-अप्रैल में तैयार की जाती है।
ब्रोकली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
ब्रोकली के लिए दोमटी और बलुई मिट्टी उपयुक्त होती है। जिसमें पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद हो इसकी खेती के लिए अच्छी होती है। हल्की भूमि में पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद डालकर इसकी खेती की जा सकती है।
ब्रोकली की उन्नत किस्में
ब्रोकली की किस्में मुख्यतः तीन प्रकार की होती है श्वेत, हरी व बैंगनी। परन्तु बाजार में हरे रंग की गंठी हुई शीर्ष वाली किस्मे अधिक पसंद की जाती है। इनमें नाइन स्टार, पेरिनियल, इटैलियन ग्रीन स्प्राउटिंग,या केलेब्रस, बाथम 29 और ग्रीन हेड प्रमुख किस्में हैं।
परिपक्वता के आधार पर ब्रोकली की किस्मों को तीन भागों में विभाजित किया गया है।
अगेती किस्में- ये किस्में रोपण के पश्चात 60-70 दिन में तैयार हो जाती हैं। प्रमुख किस्में डी सिक्को, ग्रीन बड तथा स्पार्टन अर्ली हैं तथा संकर किस्मों में सर्दन कोमैट, प्रीमियम क्राप, क्लीप प्रमुख हैं।
मध्यवर्गीय किस्में- ये लगभग 100 दिन में तैयार हो जाती हैं। प्रमुख किस्में- ग्रीन स्प्राउटिंग मीडिया। संकर किस्में- क्रोसैर, क्रोना, ईमेरलर्ड।
पिछेती किस्में- ये किस्में रोपण के लगभग 120 दिन के उपरांत तैयार हो जाती हैं। प्रमुख किस्में- पूसा ब्रोकली-1, के. टी., सलेक्शन-1, पालम समृद्धि। संकर किस्में- स्टिफ, कायक, ग्रीन सर्फ एवं लेट क्रोना।
आपको बता दें, अभी हाल में भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान(ICAR) द्वारा ब्रोकली की के.टी.एस.9 किस्म विकसित की गई है। इसके पौधे मध्यम ऊंचाई के, पत्तियां गहरी हरी, शीर्ष सख्त और छोटे तने वाला होता है।
बीज की मात्रा और नर्सरी
गोभी की भांति ब्रोकली के बीज बहुत छोटे होते है। एक हेक्टेअर की पौध तैयार करने के लिए लगभग 375 से 400 ग्राम बीज पर्याप्त होता है।
ब्रोकोली की पत्ता गोभी की तरह पहले नर्सरी तैयार की जाती है। इसके लिए छोटी-छोटी क्यारियां बनाकर बीज की बुआई करें। नर्सरी में पौधों को कीटों से बचाव के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र का प्रयोग कर सकते हैं। बीज बुआई के बाद पौधे को 3-4 सेंटीमीटर होने पर उसे बड़ी क्यारियों में गोभी की तरह ही पौध रोपण करे।
खेत में पौधों की कतार से कतार, पक्ति से पंक्ति में 15 से 60 सेमी का अन्तर रखकर तथा पौधे से पौधे के बीच 45 सें०मी० का फ़सला देकर रोपाई कर दें। रोपाई करते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए तथा रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें।
खाद और उर्वरकों का प्रयोग कब और कैसे करें
रोपाई की अंतिम बार तैयारी करते समय प्रति 10 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में 50 किलो ग्राम गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद कम्पोस्ट खाद इसके अतिरिक्त एक किलो ग्राम नीम खली एक किलोग्राम अरंडी की खली इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर क्यारी में रोपाई से पूर्व समान मात्रा में बिखेर लें इसके बाद क्यारी की जुताई करके बीज की रोपाई करें।
यदि आप रासायनिक खादों का प्रयोग करना चाहते हैं तो खाद की मात्रा प्रति हेक्टेयर खाद मिट्टी परीक्षण के आधार पर दें।
गोबर की सड़ी खाद : 50-60 टन
नाइट्रोजन : 100-120 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेअर
फॉस्फोरस : 45-50 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेअर
गोबर और फॉस्फोरस खादों की मात्रा को खेत की तैयारी में रोपाई से पहले मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला दें। नाइट्रोजन की खाद को 2 या 3 भागों में बांटकर रोपाई के क्रमशः 25, 45 तथा 60 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं। नाइट्रोजन की खाद दूसरी बार लगाने के 20-25 दिन बाद, पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाना लाभदायक रहता है।
सिंचाई प्रबंधन
मिट्टी मौसम तथा पौधों की बढ़वार को ध्यान में रखकर, ब्रोकली में लगभग 10-15 दिन के अन्तर पर हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है।
खरपतवार प्रबंधन
जैसा कि हम सभी जानते हैं यदि फसल में खरपतवार की मात्रा बढ़ जाए तो इसका सीधा असर फसल पर पड़ता है। अतः ब्रोकली की जड़ एवं पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए के लिए क्यारी में से खरपतवार को बराबर निकालते रहना चाहिए। गुड़ाई करने से पौधों की बढ़वार तेज होती है। गुड़ाई के उपरांत पौधे के पास मिटटी चढ़ा देने से पौधे पानी देने पर गिरते नहीं है।
कटाई और मार्केटिंग
जब फसल तैयार हो जाए तो समय पर इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। जब ब्रोकली की फूल अच्छी तरह परिपक्व हो जाए तो इसकी कटाई कर लें। इसको तेज़ चाकू या दरांती से कटाई कर लें।
ध्यान रखें कि कटाई के साथ गुच्छा खूब गुंथा हुआ हो तथा उसमें कोई कली टूटने न पाए। ब्रोकोली को अगर तैयार होने के बाद देर से कटाई की जाएगी वह ढीली होकर बिखर जायेगी तथा उसकी कली खिलकर पीला रंग दिखाने लगेगी ऐसी अवस्था में कटाई किये गए गुच्छे बाजार में बहुत कम दाम पर बिक बिकेंगे।
इन दिनों अन्य गोभी की तुलना में इसकी मांग बढ़ रही है। बाजार में ब्रोकली प्रायः 100-150 रूपए प्रति किलो तक बिक जाती है।
ब्रोकोली की अच्छी फ़सल से लगभग 12 से 15 टन पैदावार प्रति हेक्टेयर होती है। यदि इसे ग्रीन हाउस में करें तो यह पैदावार डेढ़ से दोगुनी हो जाती है। ब्रोकोली की खेती से आप आराम से प्रति एकड़ 1.5 से 2 लाख आराम से कमा सकते हैं।
आशा करते हैं, इस ब्लॉग में आपको ब्रोकोली की खेती (brokali ki kheti in hindi) के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली होगी। यदि आप अन्य फसलों की खेती के बारे में जानना चाहते हैं तो आप हमारे अन्य ब्लॉग/लेखों को अवश्य पढ़ें। अगर आपको यह ब्लॉग अच्छा लगा हो, तो इसे मित्रों तक जरूर शेयर करें।
Resource :https://bit.ly/3WLhbWZ