Chukandar Ki Kheti in Hindi: चुकंदर (Beetroot) के लिए ‘फल एक, गुण अनेक’ कहें है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। लाल रंग का यह कंद फल चुकंदर में चीनी 9-10%, और प्रोटीन 1-2.5% भी होते हैं। चुकंदर में औषधीय गुण खूब पाए जाते हैं। इसमें मैग्नीशियम, कैल्शियम, आयोडीन, पोटेशियम, आयरन, विटामिन-सी, और विटामिन-B की मात्रा प्रचुर मात्रा में भी पाई जाती है। इसे फल, सलाद, सब्ज़ी, आचार या जूस के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। ठंड के मौसम में इसकी डिमांड सबसे ज़्यादा है होती है। ऑर्गेनिक फार्मिंग के इस दौर में लोग फिर से धीरे-धीरे पौष्टिक आहार का रुख़ कर रहे हैं इसलिए चुकंदर की खेती को (chukandar Ki kheti) करके आप अच्छी कमाई कर सकते हैं।
तो आइए, ताजा खबर ऑनलाइन के इस लेख में चुकंदर की खेती (beetroot farming in Hindi) को करीब से हम जानते हैं।
इस लेख में हम लोग चुकंदर की खेती कैसे करें? (chukandar Ki kheti kaise karee), इस सवाल का जवाब आसान भाषा में जानेंगे हम ।
सबसे पहले चुकंदर की खेती के लिए हम आवश्यक जलवायु को जान लेते हैं।
चुकंदर की खेती (chukandar Ki kheti) के लिए ज़रूरी जलवायु है।
Chukandar Ki Kheti चुकंदर ठंडी मौसम की फसल है। इसका सबसे अच्छा रंग, बनावट और गुणवत्ता और ठंडे मौसम की स्थिति में ही प्राप्त होती है। लेकिन इसे हल्की गर्म जलवायु में भी उगाया जा सकता है। मैग्नीशियम, कैल्शियम, आयोडीन, पोटेशियम, आयरन, और विटामिन-सी, और विटामिन-B से भरपूर चुकंदर की खेती के लिए 18-21 डिग्री सेल्सियस का तापमान आदर्श माना गया है।
चुकंदर की खेती के लिए उपयोगी मिट्टी
चुकंदर की खेती (chukandar ki kheti) के लिए सबसे अच्छी मिट्टी बलुई दोमट ही होती है। अच्छी फसल के लिए मिट्टी का पीएच 6-7 के बीच होना चाहिए। बलुई दोमट मिट्टी उपलब्ध ना हो तो आप दोमट मिट्टी या लवणीय मिट्टी में भी उपयुक्त होती है।
खेती का सही समय है
देश की जलवायु के हिसाब से चुकंदर की खेती (chukandar ki kheti) का सबसे अच्छा समय अक्टूबर के पहले हफ्ते से ही लेकर जनवरी-फरवरी तक का होता है। बुवाई का समय सम जलवायु में माना जाता है यानी ना तो ज्यादा गर्मी हो और ना ही ज्यादा सर्दी हो इसलिए सबसे अच्छा और लाभदायक समय अक्टूबर का महीना ही रहता है।
ऐसे करें चुकंदर की खेत (chukandar ki kheti) की तैयारी
Chukandar Ki Kheti खेत तैयार करते हुए सबसे पहली बार में गहरी जुताई करें और उसके बाद 2-3 बार हल्की जुताई करें। किसी भी फसल के लिए उपयुक्त खाद होना अत्यंत आवश्यक होता है। चुकंदर की अच्छी फसल के लिए खेत तैयार करते समय प्रत्येक एकड़ में कम से कम 4 टन गोबर की खाद मिलाएं। खाद डालने के बाद बीज बोने से पहले थोड़ी-थोड़ी दूरी पर क्यारियां बना लें ताकि बीजारोपण करने में सुविधा हो।
Chukandar Ki Kheti बसंत मौसम के शुरुआती दौर में बीजारोपण का पहला चक्र शुरू कर दें और मध्य गर्मियों तक हर 2 से 3 हफ्ते के दौरान में लगातार बीजारोपण करें। बीज बुवाई के समय मिट्टी में नमी की मात्रा, बोने का समय और बीज की जाति पर यह भी निर्भर करता है कि आपको कितने बीज की आवश्यकता है। एक अंकुर वाली जाति में 4-6 किलो और बहु अंकुर वाली किस्मों में 10-12 किलो ग्राम बीज की प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है। बोने से पहले चुकंदर के बीजों को 12 घंटे तक भिगोना भी चाहिए। यह क्रिया अंकुरण की प्रक्रिया को तेज करती है। चुकंदर को वहां लगाना चाहिए जहां किसी दूसरे पेड़ की जड़ें ना फैली हों और ना ही साथ में कोई दूसरी फसल भी लगी हो क्योंकि इसकी जड़े 36 से 48 इंच की गहराई तक पहुंच सकती हैं।
चुकंदर की उन्नत किस्में
चुकंदर की कई किस्में हैं जिनकी आप खेती भी कर सकते हैं।
डेट्रॉइट डार्क रेड
Chukandar Ki Kheti इस किस्म का चुकंदर के आकार में गोल और गाढ़े लाल रंग का ही होता है। इसके पौधों की पत्तियां हरे रंग की एवं लंबी होती है। इस किस्म की खेती करने पर किसान अधिक उत्पादन प्राप्त भी कर सकते हैं।
क्रिमसन ग्लोब
यह किस्म भी सबसे अधिक पैदावार वाली होती है । इस पौधे में लगा हुआ चुकंदर चपटा और गहरे लाल रंग का होता है। इसके पत्ते हरे रंग के होते हैं जिनमें कहीं-कहीं मरून रंग का शेड भी होता है। क्रिमसन ग्लोब का अंदरूनी भाग भी गाढ़ा लाल ही होता है।
अर्ली वंडर
ये किस्म चपटी और चिकनी होती है। इसकी फसल को तैयार होने में 55 से 60 दिन तक का समय लगता है। इसका ऊपरी भाग हरे पत्तों और लाल डंडियों से भरा ही होता है।
मिस्त्र की क्रॉस्बी
इस किस्म के फलों का रंग गहरा लाल से बैंगनी भी होता है। अर्ली वंडर की तरह इस किस्म को तैयार होने में भी 55 से 60 दिनों का समय लगता है। जब इसे हल्की गर्मी में उगाया जाता है तो इसके अंदरूनी हिस्से में हल्का सफेद रंग भी दिखाई देता है।
रूबी रानी
रूबी क्वीन किस्म अपनी गुणवत्ता के लिए बेहद पसंद की जाती है। इसे पकने में 60 दिन भी लग जाते हैं। यह गहरे लाल रंग का होता है जिसका वज़न 100 से 125 ग्राम तक होता है। इसे सलाद में सबसे ज़्यादा उपयोग में किया जाता है।
चुकंदर की खेती (chukandar ki kheti) में सिंचाई और उवर्रक के प्रबंधन
चुकंदर को बहुत ज़्यादा सिंचाई की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है। यदि बरसात का मौसम है तो यह आवश्यकता और भी कम हो जाती है। फसल बोने के शुरुआती में 15 दिनों में पहली सिंचाई और उसके 5 दिन बाद दूसरी बार सिंचाई कर दें। यदि बरसात नहीं हो रही है तो 8-10 दिन के अंतराल में सिंचाई करें ले ।
सबसे महत्वपूर्ण बात जो ध्यान में भी रखनी होती है वो यह है कि क्यारियों में जल जमा ना हो जाए। यदि सिंचाई सही ढंग से की जाए तो इससे जड़ का विकास होता है, तेजी से विकास होता है और अच्छी उपज भी मिलती है। ड्रिप इरिगेशन में सिस्टम बेहतर तरीका है और फायदेमंद भी साबित होता है। फसल को तैयार होने में 3 से 4 महीने का समय भी लगता है। खुदाई से करीब 15 दिनों पहले सिंचाई का कार्य बंद कर दें।
चुकंदर की खेती (chukandar ki kheti) के लिए 50 किलो यूरिया, और 70 किलो डी.ए.पी यानि डाई-एमोनियम फॉस्फेट और 40 किलो पोटाश प्रति एकड़ मिलाएं। खेत में जैविक खाद डालने से अच्छे परिणाम भी मिलते हैं और चुकंदर को उसके अधिकतम आकार तक बढ़ने में मदद भी मिलती है। मिट्टी में बोरॉन ना हो इसका पहले ही परीक्षण कर लेना चाहिए क्योंकि इसकी उपस्थिति से जड़े भी कमज़ोर या टूट सकती हैं। इससे बचने के लिए मिट्टी में बोरिक एसिड या बोरेक्स भी मिलाया जाता है।
रोग एवं कीट प्रबंधन को कैसे करें
चुकंदर की फसल में खरपतवार पर नियंत्रण के लिए 25 से 30 दिनों बाद निराई-गुड़ाई बहुत ज़रूरी है। चुकंदर की फसल को रोग लग जाए तो उचित मात्रा में केमिकल का छिड़काव भी करे और फसल को बचाया जा सकता है। रेड स्पाइडर, एफिड्स, फ्ली बीटल और लीफ खाने वाले जैसे कीटों को 2 मिली मैलाथियान 50 ईसी प्रति 1 लीटर पानी का छिड़काव करके नियंत्रित भी किया जा सकता है। रोपण से पहले बीजों का सही बेहतर परिणाम देता है और कीट प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है।
चुकंदर की खेती में लागत और कमाई कितनी होने चाहिए।
Chukandar Ki Kheti चुकंदर की खेती के बाद कम से कम 2-3 महीने में चुकन्दर की औसतन 30-40 क्विंटल प्रति हैक्टेयर जड़ों की प्राप्ति में हो जाती है। किसानों को 20 रूपए से लेकर 50 रूपये प्रति किलो की दर से उनकी उपज की कीमत भी मिल जाती है। अक्टूबर में खेती वाले किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं क्योंकि उसके बाद में फरवरी तक इसकी मांग रहती है। हालांकि अपने गुणों के कारण यह लगभग साल भर मांग में रहता है इसलिए उपयुक्त वातावरण तैयार कर के कभी भी इसकी खेती की जा सकती है।
ये तो थी चुकंदर की खेती (chukandar ki kheti) की बात। लेकिन इस ,पर आपको कृषि एवं मशीनीकरण, सरकारी योजना और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर भी कई महत्वपूर्ण ब्लॉग्स भी मिलेंगे, जिनको पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं और दूसरों को भी इन्हें पढ़ने के लिए शेयर भी कर सकते हैं।
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