लहसुन की खेती कैसे करें (Garlic farming in hindi): मसाला वर्गीय फसल में लहसुन (Garlic) एक महत्वपूर्ण फसल है। इसमें एलसिन नामक तत्व पाया जाता है। जिसके कारण इसमें तीखा स्वाद होता है। लहसुन में कई औषधीय गुण होते है, जो हमारे स्वास्थ्य की दृष्टि से भी काफी लाभदायक है। इसका प्रयोग गले और पेट संबंधित बीमारियों में भी खूब होता है। इसका उपयोग अचार, चटनी, मसाले और सब्जियों में किया जाता है।
लहसुन की खेती (lahsun ki kheti) भारत में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और हरियाणा और पंजाब में खूब होती है। विश्व में लहसुन उत्पादन में भारत चीन के बाद दूसरा स्थान है।
तो आइए, आज के इस लेख में लहसुन की वैज्ञानिक खेती (lahsun ki kheti) के बारे में करीब से जानें।
इस लेख में आप जानेंगे
लहसुन के लिए जरूरी जलवायु
उपयुक्त मिट्टी
lahsun ki kheti का समय
सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
लगने वाले रोग और उसका प्रबंधन
लहसुन की खेती में लागत और कमाई
Garlic Farming लहसुन की खेती (lahsun ki kheti) के लिए जरूरी जलवायु
लहसुन की खेती के लिए न अधिक गर्म और न अधिक ठंड का मौसम होना चाहिए। इसके लिए मध्यम ठंडी जलवायु उत्तम माना जाता है। भारत में इसकी खेती लगभग सभी राज्यों में की जा सकती है। लहसुन का गांठ तैयार होने के लिए औसत 25-30 डिग्री सेलसियस तामपान अच्छा माना जाता है।
लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
Garlic Farming लहसुन की खेती (lahsun ki kheti) के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी अच्छी होती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.8 से 6.5 के मध्य होना चाहिए। काली और बुलई मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है। यदि मिट्टी में पोटाश की मात्रा अधिक हो तो इसकी पैदावार में कई गुना की बढ़ोतरी हो जाती है। जलजमाव वाले खेत में इसकी खेती न करें।
लहसुन की खेती (lahsun ki kheti) के लिए उपयुक्त समय
वर्षा ऋतु के अंत में सितंबर-अक्टूबर में इसकी बुआई अच्छी मानी जाती है। अगस्त के अंत और सितंबर के प्रारंभ में लहसुन की रोपाई करने से ठंड का मौसम आते-आते फसल तैयार हो जाती है। देश के कुछ भागों में अक्टूबर-नवंबर में भी लहसुन की बुआई होती है लेकिन अधिक ठंड के मौसम में खेती करने से गुणवत्ता प्रभावित होने का खतरा बना रहता है।
लहसुन की खेती (lahsun ki kheti) का तरीका
Garlic Farming लहसुन की खेती करने से पहले खेत को 2-3 बार जुताई करके उसमें गोबर या वर्मी कंपोस्ट खाद मिलाकर खेत को समतल कर लें। खेत में भुरभुरी मिट्टी होना अति आवश्यक है। लहसुन लगाने से पहले खेत में जलनिकासी की अच्छी व्यवस्था कर लें। पौध लगाने की कलियों के बीच 15 सेंटी मीटर की दूरी होनी चाहिए वहीं कतारों के बीच यह फासला 7.5 सेंटी मीटर का होना चाहिए। खेत में मेढ़ बनाकर भी लहसुन की बुआई की जाती है। प्रति एकड़ खेत में डेढ़ से दो क्विंटल लहसुन की कलियां बोई जा सकती है। बोते समय जवां यानि लगाने वाले कलियों का नुकिला भाग ऊपर की ओर होना चाहिए। हाथ के अलावा कृषि यंत्र से भी लहसुन की बुआई की जा सकती है। कृषि यंत्र से बुवाई करते वक्त काफी सावधानी बरतने की जरूरत पड़ती है ताकि बीज क्षतिग्रस्त न हो।
लहसुन(Garlic) की उन्नत किस्में
देश के अलग-अलग भागों में उगाए जाने वाले लहसुन की कई किस्में हैं। कुछ महत्वपूर्ण किस्मों को यहां जानते हैं।
यमुना सफेद 1 (जी-1)- इस किस्म के के लहसुन के कंद 3-4 सेंटी मीटर व्यास के आकार के होते हैं। यह देखने में चांदी की तरह सफेद होता है जिसमें 20-25 उच्च गुणवत्ता वाले जवे होते हैं।
यमुना सफेद 2 (जी-50)- इस किस्म का लहसुन 4-5 सेंटी मीटर व्यास के आकार का सफेद और गाढ़ा क्रीम रंग का होता है। बल्ब के आकार वाले प्रत्येक कंद में 20-25 जवे होते हैं।
यमुना सफेद 3 (जी-282)- इसका कंद ठोस ऊपरी छिलका सफेद व अंदर गुदा क्रीम रंग का होता है। बुआई के 5-6 माह बाद यह खुदाई और भंडारण के लिए तैयार हो जाता है।
यमुना सफेद 4(जी- 323) इसके कंद बड़े 5.87 सेंटी मीटर व्यास आकार के होते हैं। बल्ब के आकार में यह भी देखने में सफेद व ठोस होता है। इस किस्म के लहसुन में एक कंद में 15-20 जवे पाए जाते हैं। इस किस्म के लहसुन बुवाई के बाद लगभग साढ़े चार व पांच माह मे तैयार हो जाते हैं।
वीएल लहसुन 2- इस किस्म के लहसुन के खेती (garlic farming) प्रायः पर्वतीय क्षेत्रों में होती है। इसका कंद सफेद तथा हल्का बैगनी रंग का होता है। यह 5-7 सेंटी मीटर व्यास के बल्व आकार का होता है।
एग्रिफाउन्ड पार्वती (जी-313)- यह भी पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाली लहसुन की एक उन्नत किस्म मानी जाती है। इसका शल्क कंद भी देखने में वीएल 2 की तरह होता है और इसमें 10-15 जवे पाए जाते हैं। 8-9 माह में तैयार होने वाली यह लहसुन की उन्नत किस्म मानी जाती है। प्रति हेक्टेयर 175 से 225 क्विंटल इसकी उपज संभव है। उच्च गुणवत्ता के चलते लहसुन की यह किस्म निर्यात के उपयुक्त मानी जाती है।
गोदावरी (सेलेक्शन-2)- इसका शल्क कंद 4.35 सेंटी मीटर मध्म आकार का होता है। हल्के गुलाबी और सफेद रंग के प्रत्येक कंद में 22-25 जवे पाए जाते हैं। प्रति हेक्येटर इसकी उपज 100-105 क्विंटल तक होती है।
भीमा पर्पल- यह उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में पायी जाने वाली लहसुनन की एक उन्नत प्रजाति है। इसका कंद देखने में हल्का बैगनी रंग का होता है। बुवाई से लगभग चार साढ़े चार माह बाद यह तैयार हो जाता है। इसकी पैदावार 60-70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
लहसुन की खेती (lahsun ki kheti) में सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
सिंचाई
Garlic Farming लहसुन की बुआई के तुंरत बाद खेत में पहली सिंचाई की जरूरत पड़ती है। प्रारंभ में न्यूनतम तथा कम अंतर पर पानी की जरूरत पड़ती है। नई जड़ें विकसित होने तक खेत में नमी होनी चाहिए। इसलिए पहली सिंचाई के दो-तीन दिन बाद ही सिंचाई करने की जरूरत पड़ती है। नई जड़ें विकसित होने के बाद जैसे-जैसे उसकी वृद्धि होती है, उसी अनुसार पानी की भी जरूरत होती है। पौधे गांठ बनने से लेकर लहसुन के पूर्ण विकसित होने तक मौसम के अनुसार नियमित सिंचाई की जरूरत पड़ती है। रबी के मौसम शुरू होने के पहले 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जा सकती है। लेकिन ठंड के मौसम शुरू होने पर सप्ताह में एक बार भी सिंचाई करने से काम चल जाता है।
उर्वरक
वैसे तो लहसुन की खेती के लिए जुताई के समय ही खेतों में पर्याप्त मात्रा में गोबर की खाद डालना उत्तम माना जाता है। लेकिन पर्याप्त और उच्च गुणवत्ता वाले लहसुन की उपज के लिए खेतों में खाद व उर्वर डालना जरूरी होता है। प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 200-300 क्विंटल गोबर की खाद लहसुन की खेती (garlic farming) के लिए उत्तम मानी जाती है। इसके अतिरिक्त प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश क्रमशः 100, 50, 50 किलो की मात्रा में देना जरूरी होता है। लहसुन की बुआई के चार-पांच सप्ताह तथा उसके बाद 40-45 दिनों में गुड़ाई करने के दौरान खाद और उर्वरक देने से पर्याप्त व अच्छी उपज होती है।
लहसुन की खेती (lahsun ki kheti) में रोग प्रबंधन
लहसुन के पौधों में रोग न लगे, इस पर ध्यान रखने के लिए उचित देखभाल की जरूरत पड़ती है। लहसुन में सड़न-गलन रोग का खतरा बना रहता है। पौधा में बैगनी धब्बा लगना भी एक तरह का रोग है जो फसल को नष्ट कर देता है। रोग और पौधे में बीमारियों से बचाव के लिए बुवाई से पहले ही प्रति किलों बीज को 2-3 ग्राम केप्टान से उपचारित कर लिया जाना चाहिए।
लहसुन की खेती में लागत और कमाई
Garlic Farming लहसुन का इस्तेमाल अधिकतर मसालों के रूप में और आयुर्वेदिक दवाओं में होता है। इसलिए बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। एक तरह से यह भी एक नकदी फसल है और उपर्युक्त बताए गए वैज्ञानिक तरीके से इसकी खेती (garlic farming) कर अच्छी खासी आय की जा सकती है।
एक एकड़ जमीन में 5 हजार रुपए का बीज लगता है। व्यवसायिक दृष्टि से एक हेक्टोयर में 12-13 हजार रुपए का बीज लगेगा। 5 हजार से लेकर 12-13 हजार रुपए की पूंजी से लहसुन की खेती शुरू की जा सकती है। लेकिन एक एकड़ में लहसून की व्यवसायिक खेती करने में बीज, खाद, पानी और मजदूरी आदि कुल खर्च लेकर 50-60 हजार रुपए पूंजी की जरूरत पड़ेगी। एक हेक्टेयर भूमि में 8 टन लहसुन की पैदावार होती है। अधिक से अधिक पांच-छह माह में लहसुन की फसल तैयार हो जाती है और वह भंडारण के लिए उपयुक्त मानी जाती है। न्यूनतम 100 रुपए प्रति किलो की दर से एक हेक्टेयर भूमि में 8 टन लहसुन की कीमत 8 लाख रुपए तक होती है। खेती पर आने वाले कुल खर्च के रूप में यदि एक लाख रुपए काटकर देखा जाए तो प्रति हेक्टेयर भूमि में 7 लाख रुपए की आमदनी होगी।
Garlic Farming 50 हजार से लेकर 1 लाख रुपए तक की पूंजी लगाकर छह माह में 6-7 लाख यानी एक साल में लगभग 14 लाख रुपए की आय कम नहीं कहीं जा सकती। शहरों में 20-25 हजार प्रति माह वेतन की नौकरी के लिए भटकने वाले युवा लहसुन की खेती (garlic farming) में रोजगार के अवसर ढूढ़ सकते हैं। अब तो शिक्षित बेरोजगार युवकों को कृषि में रोजगार तलाशने के लिए सरकार भी प्रोत्साहित कर रही है। अगर किसी के पास भूमि नहीं है और खेती किसानी में रुचि है तो वह भूमि लीज पर भी लेकर लहसुन की व्यवसायिक खेती (garlic farming) कर सकता है।
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