मूंग (moong) एक दलहनी फसल है। मूंग में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, विटामिन और कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। मूंग दाल का इस्तेमाल नमकीन, दाल,और हलवे के रूप में खूब होता है। उपयुक्त तापमान और जलवायु होने पर इसकी पैदावार भी खूब होती है। यदि आप भी कम लागत और कम समय में अधिक आमदनी करना चाहते हैं, तो मूंग की खेती (moong ki kheti) आपके लिए सबसे अच्छा ऑप्शन है।
तो आइए, ताजा खबर online के इस ब्लॉग में मूंग की खेती की संपूर्ण जानकारी जानें।
सबसे पहले मूंग की खेती (moong ki kheti) पर एक नज़र डाल लेते हैं।
मूंग की खेती पर एक नज़र
- मूंग का वानस्पतिक नाम विगना रेडिएटा (Vigna radiata) है।
यह लेग्यूमिनेसी कुल का पौधा है।
मूंग की खेती की शुरुआत सबसे पहले भारत में की गई थी।
मूंग के दानों में 25% प्रोटीन, 60% कार्बोहाइड्रेट, 13% वसा और विटामिन सी पाया जाता है।
पूरे विश्व में भारत मूंग के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है।
मूंग की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु
मूंग की खेती (moong ki kheti) के लिए नम और गर्म जलवायु अच्छी होती है। पौधे के बढ़वार के लिए 25-32 डिग्री सेल्सियस तापमान सही होता है। इसके लिए दोमट और बलुई मिट्टी अच्छी होती है। जिसका पीएच मान 7.0 से 7.5 तक होना चाहिए। मूंग की खेती के लिए 75-90 सेंटीमीटर वर्षा जरूरी होता है।
खेत की तैयारी
खरीफ की फसल के लिए एक बार जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना करवा दें। इसके बाद वर्षा की शुरुआत होते ही 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करें। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर दें। दीमक से बचाव के लिए क्लोरपायरीफॉस का छिड़काव पहली या दूसरी जुताई के दौरान ही कर दें।
गर्मी के समय मूंग की खेती (moong ki kheti) के लिए रबी फसलों के कटाई के तुरन्त बाद खेत की जुताई दें। 4-5 दिन के बाद पलेवा करना चाहिए। पलेवा के बाद 2-3 जुताइ देशी हल या कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर खेत को बराबर कर लें। जिससे खेत में उपयुक्त नमी बनी रहे। ऐसा करने से बीजों में अच्छा अंकुरण होता है।
मूंग की बुआई का समय
यदि आप जायद यानी गर्मी में मूंग की खेती (moong ki kheti) करना चाहते हैं तो मूंग की बुआई मार्च के पहले सप्ताह से लेकर अंतिम सप्ताह तक कर दें। खरीफ के समय मूंग की बुआई के जून के आखिरी सप्ताह और जुलाई के पहले सप्ताह में करनी चाहिए।
मूंग की उन्नत किस्में
टॉम्बे जवाहर मूंग-3
जवाहर मूंग 721
एच.यू.एम
पूसा विशाल
पीडीएम 11
बुआई की विधि
मूंग की बुआई कतार विधि से करने पर उपज अच्छी होती है। बुआई देशी हल या सीड ड्रिल मशीन से लगभग 30 सेंमी. की दूरी पर करें। गर्मी के समय में पौधों की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बीज की गहराई 5-7 सेंटीमीटर रखें।
मूंग की खेती में उर्वरक प्रबंधन
बुआई से पहले नाइट्रोजन और फास्फोरस का छिड़काव करें। पौटेशियम की कमी वाले क्षेत्रों में पोटाश का इस्तेमाल करें। अच्छी उपज के लिए कोई भी उर्वरक खेत में डालने से पहले मिट्टी की जांच करा लें। पोषक तत्वों की कमी होने पर उपयुक्त तत्वों को खेत में डालें।
मूंग की खेती में सिंचाई प्रबंधन
वर्षा के समय में मूंग की फसल में सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। मिट्टी में नमी के आधारपर सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई फूल निकलने से पहले और दूसरी सिंचाई फलियाँ बनने के समय करनी चाहिए। वसंत के समय में सिंचाई के बीच 10 से 15 दिन का अंतर रखना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हल्की सिंचाई करें और खेत में पानी ठहरा न रहे।
खतपतवार नियंत्रण
खरपतवार मिट्टी से पोषक तत्वों को खींच लेते हैं जिससे उपज कम हो जाती है। अगर खरपतवार खेत से नहीं निकाले गये तो फसल की उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होती है। यदि खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार, जैसे-बथुआ, सेंजी, कृष्णनील, सतपती अधिक हो तो स्टाम्प-30 (पैंडीमिथेलिन) का छिड़काव करें।
कीट नियंत्रण
मूंग की फसल में प्रमुख रूप से फली भ्रंग, हरा फुदका, माहू, तथा कम्बल कीट का प्रकोप होता है। पत्ती भक्षक कीटों के नियंत्रण के लिए क्विनालफास या मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा हरा फुदका, माहू एवं सफेद मक्खी जैसे रस चूसक कीटो के लिए डायमिथोएट या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. का छिड़काव करें।
मूंग की खेती में लगने वाले रोग
अल्टरनेरिया धब्बा रोग
इस रूप में पहले मूंग के पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। बाद में यह धब्बे बड़े हो जाते हैं। और गहरे भूरे रंग के हो दिखाई देते हैं पत्ते का संक्रमित भाग मुरझा पर गिरने लगता है। इसके निदान के लिए खेत में फाेरम और जीनेब छिड़काव करें।
अन्थ्रक्नोज
इस रोग में पौधे की पत्तियां और तना दोनों ही संक्रमित होती है। इस रोग में भूरे धब्बे लालिमा लिए हुए दिखाई देते हैं। पौधों की बढ़वार को प्रभावित करते हैं। इस रोग के निदान के लिए संक्रमित पौधों को तोड़कर दूर फेंक दें और बीज बोने के समय यह वविस्टिन और कैप्टन का छिड़काव करें।
जीवाणु पत्ती धब्बा रोग
इस रोग में पत्तों पर सूखे हुए भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। धीरे-धीरे इसका संक्रमण पूरे पत्तियों पर हो जाता है। इससे पौधे की बढ़वार के साथ-साथ फलियां भी प्रभावित होती हैं।
इस रोग से बचाव के लिए बुवाई करने से पहले भी बीज को 30 मिनट का 550 पीपीएम स्पेक्ट्रो साइकिल इन घोल में डुबोकर रखें। इसके अलावा कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का छिड़काव भी कर सकते हैं।
सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग
इस रोग में पत्तियां सिकुड़कर सूख जाती है। जिसका सर कुछ दिनों में ताना पर भी देखा जाता है। इस रोग से बचाव के लिए बुवाई के लगभग 30 से 45 दिन के बाद काबेंडाजिम का छिड़काव करें।
लीफकर्ल रोग
इस रोग में पत्तियां बीच के सिरे से ऊपर की ओर मुड़ जाती है। और नीचे की पत्तियां अंदर की ओर मुड़ जाती है । बुआई के कुछ हफ्ते बाद यह लक्षण दिखाई देने लगता है। इस रोग से बचाव के लिए ऐसीफेट और डाई डाईमिथोट दोनों को मिलाकर घोल बना कर छिड़काव करें।
मोजेक रोग
इस रोग में पत्तियां पीली पड़ जाती है। इससे बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव करें।
चूर्णिल रोग
इस रोग में पौधे के जड़ के पास आपको पाउडर जैसा गिरा हुआ दिखाई देगा। तो समझ जाएगी यह पौधा संक्रमित है। इसके निदान के लिए उपयुक्त मात्रा में गंधक का छिड़काव करें।
मूंग की भंडारण विधि
उड़द में कीटनाशक दवा मिलाकर भंडारण करें। लेकिन भंडारण तभी करें जब आपको उसकी जरुरत हो नहीं तो अपनी जरूरत भर दाल रखकर और दाल बेचकर पैसे ले ले जिसमें आपको ज्यादा फायदा होगा।
मूंग की कटाई एंव गहाई
मूंग की फसल लगभग 65-70 दिन में पक जाती है। फलियां पक कर हल्के भूरे रंग की अथवा काली होने दिखने लगे तो समझ जाएगी फलियां काटने के लायक हो चुकी है। कटाई 2-3 बार में करें। बाद में फसल को पौधें के साथ काट लें। काटने के बाद पौधे को अच्छी तरह सूखा लें। सुखाने के बाद चाहे तो डडें से पीट कर या बैंलो को चलाकर गहाई कर सकते है। गहाई के लिए थ्रेसर का इस्तेमाल करें।
ये तो थी मूंग की खेती (moong ki kheti) कैसे करें? की बात। यदि आप इसी तरह कृषि, मशीनीकरण, सरकारी योजना, बिजनेस आइडिया और ग्रामीण विकास की जानकारी चाहते हैं तो इस वेबसाइट की अन्य लेख जरूर पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ने के लिए शेयर करें।
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