तेल के बढ़ते मांग और दाम को देखते हुए सरसों की खेती (sarson ki kheti) में अपार संभावनाएं गया है । सरसों (Mustard) का उपयोग न केवल तेल(Oil) में अपितु मशालों के रूप में भी होता है। सरसों का तेल बहुत ही पौष्टिक माना गया है । सरसों के तेल में कई प्रकार के औषधीय के गुण भी होते हैं। त्वचा के लिए सरसों का तेल (Mustard Oil) बहुत ही फायदेमंद होते है। सरसों कम पानी में भी अधिक पैदावार होते है। तिलहनी फसलों में सरसों (Mustard) एक महत्वपूर्ण फसल है।
तो आइए,ताजा खबर ऑनलाइन /के इस लेख सरसों की खेती (sarson ki kheti) को विस्तार रूप से जानें
इस लेख में आप जानेंगे की
सरसों की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु अवसयक है
सरसों की खेती के लिए मिट्टी का होना महत्वा पूड है Sarso Ki Kheti In Hindi
खेत की तैयारी करे
बीज और बुआई का समय
सरसों की उन्नत किस्में
पीली सरसों की खेती करे
सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन की जानकारी ले
सरसों में लगने वाले कीट व रोग और उनका प्रबंधन क्या है
अधिक उत्पादन के लिए फसल चक्र कैसे अपनाएं है
सरसों की खेती (sarson ki kheti) में लागत और कमाई क्या है
सरसों की खेती के उपयुक्त जलवायु का होना आवस्यक है
सरसों की फसल (sarson ki fasal) के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। भारत में इसकी खेती रबी के मौसम में ही की जाती है। इसके लिए औसत तापमान 26 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड काफी उपयुक्त होने चाहिए है। सरसों की बुआई के वक्त 15 से 25 सेंटीग्रेड और कटाई के समय 25 से 35 डिग्री तापमान की आवश्यकता होनी चाहिए है।
सरसों के लिए उपयोगी मिट्टी होती है
सरसों की फसल (sarson ki fansal) के लिए जीवांशयुक्त दोमट मिट्टी सही होती है। मिट्टी का पीएच 5.8 से 6.7 तक सरसों की खेती के (sarso ki kheti) के लिए काफी उपयुक्त होता है। पीएचमान अधिक होने पर प्रति तीसरे वर्ष जिप्सम/पायराइट 5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से ही प्रयोग करना चाहिए। जिप्सम या पायराइट को मई-जून में जमीन में मिलाकर अच्छी तरह जुताई कर लेता है ।
खेत की तैयारी करे
सरसों की फसल में (sarson ki fasal) लगाने से खेत को अच्छी तरह से 3-4 बार जुताई कर लें।
पहली जुताई के समय ही 4-5 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर डालकर जुताई करवाते है
बीज की बुआई देशी हल या सीड़ ड्रिल से कतारों में करते है
बीज पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौध से पौध की दूरी 10-12 सेंटीमीटर से अधिक नहीं रखना चाहिए
सरसों के साथ अन्य सहफसली खेती कर रहें हो तो यह दूरी और अधिक बना कर रख सकते हैं।
बीज को 2-3 सेंटीमीटर से अधिक गहरा न बोएं, अधिक गहरा बोने पर बीज के अंकुरण पर विपरीत प्रभाव जयदा पडता है।
Sarso Ki Kheti बीज और बुआई का समय है
बीज लगाने से पहले बीजोपचार जरूर कर लेते है ,ताकि इससे रोग नहीं लगते हैं।
बीजोपचार के लिए थीरम 2.5 ग्राम प्रति किलो का प्रयोग हम कर सकते हैं।
इसके लिए 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम भी प्रति किलो की दर से उपयोग करते है
सरसों की बुआई अक्टूबर से नवंबर माह के बीच में ही जरूर कर लें।
Sarso Ki Kheti सरसों की उन्नत और किस्में
सरसों की खेती (sarso ki kheti) से अधिक पैदावार के लिए अच्छे और उन्नत बीजों का होना बहुत जरूरी होता है । इसके लिए आप प्रमाणित बीज का ही उपयोग करें। सरसों की कुछ किस्में क्षेत्र के आधार पर विकसित की जाती है। अतः किसान भाइयों से सलाह है कि आप किस्मों का चुनाव करने के लिए अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र या प्रगतिशील किसानों से एक बार जरूर आप को सलाह लेना चाहिए ।
सरसों की उन्नत किस्मों में जे. एम.-1(जवाहर) जे. एम.-2, रोहिणी, वरूणा, पूसा गोल्ड, पूसा जय किसान प्रमुख रूप हैं।
जे. एम.-1
Sarso Ki Kheti सरसों की इस किस्म की ऊंचाई 170-180 सेंटीमीटर तक की होती है। यह किस्म सफेद किट्ट रोग प्रतिरोधी है। यह 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की पैदावार 18 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की होती है।
जे. एम.-2
यह किस्म 130 से 135 दिनों में तैयार भी हो जाती है। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 20-30 क्विंटल प्रतिहेक्टेयर तक होती है। इसके दानें अन्य किस्मों की तुलना में मोटे मानते हैं।
रोहिणी
Sarso Ki Kheti इस किस्म की पौधों की ऊंचाई लगभग 150-155 सेंटीमीटर तक की होती है। इसकी फलियां टहनी से चिपकी होती हैं। इस किस्म में तेल की मात्रा अन्य किस्म की तुलना में अधिक रूप में (42 प्रतिशत) होती है। इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 20-25 क्विंटल तक होती है।
वरूणा
Sarso Ki Kheti In Hindiयह सरसों की बहुत पुरानी और प्रचलित किस्म माना गया है। यह 135-140 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर २२ से सेक्विंटल तक होती है।
पूसा गोल्ड
यह किस्म 125-135 दिनों में ही तैयार हो जाती है। इस किस्म के पौध साग के लिए भी उपयोगी है। इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 15-22 क्विंटल में होती है
पूसा जय किसान
सरसों की यह किस्म 125 से 130 दिनों में पक जाती है। इस किस्म में तेल की मात्रा 42 प्रतिशत तक की होती है। इसकी उत्पादन क्षमता प्रति हेक्टेयर 25-30 क्विंटल होती है
Sarso Ki Kheti इन किस्मों के अलावा भी कई किस्में हैं जिसे आप नजदीकी बीज भंडार या जिले के कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर के प्राप्त कर सकते हैं।
पीली सरसों की खेती में
इन दिनों में पीली सरसों की खेती में (pili sarson ki kheti) भी बहुत प्रचलन रूप में किया जाता है । इसका प्रमुख कारण यह भी है की इसकी बाजार में मांग और अधिक दाम में मीलताहै । पीली सरसों (yellow mustard) प्रायः मशालों के लिए प्रयोग में भी लाई जाती है। पीली सरसों की खेती करके भी किसान अच्छा मुनाफा कमाते है ।
पीली सरसों की किस्में
पीतांबरी में
Sarso Ki Kheti सरसों की यह किस्म 2009 में विकसित की गई है। की पीली सरसों की यह उन्नत और किस्मों में से एक ही है। यह किस्म 110 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी प्रतिहेक्टेयर उत्पादन 18 से 20 क्विंटल तक की होती है। इस किस्म में तेल की मात्रा 43 प्रतिशत तक की होती है।
नरेन्द्र सरसों-2
सरसों की यह 1996 में विकसित की गई है, जो 125 से 130 दिनों में पक जाती है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 16 से 20 क्विंटल की रूप में पैदावार होती है। इस किस्म में 44 से 45 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई गई है।
K- 88
Sarso Ki Kheti यह किस्म 1978 में विकसित की गई है, जो 125 से 130 दिनों में भी पक जाती है। इससे प्रति हेक्टेयर 16 से 18 क्विंटल की पैदावार होती है। इस किस्म में 42 से 43 प्रतिशत तेल प्राप्त होता है ।
बेहतर उत्पादन के लिए फसल चक्र अपनाते है
Sarso Ki Kheti मिट्टी की उर्वराशक्ति और अधिक उपज के फसल चक्र बेहद जरूरी होती है । फसल चक्र अपनाने से फसल में रोग भी बहुत कम लगते हैं। सरसों की खेती में भी आप बेहतर फसल चक्र अपनाकर अच्छा उत्पादन कर सकते हो
जैसे-
धान- सरसों-मूंग
सोयोबीन-प्याज- परती
मक्का-सरसों-भिंडी
धान-गेंहू/सरसों
इसके सरसों के साथ अंर्तवर्तीय फसलें (intercrops) भी उगाया जा सकते हैं।
जैसे-
सरसों के साथ चना
सरसों के साथ मसूर
सरसों के साथ गेहूं
सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन की
सिंचाई
सरसों की फसल (sarson ki fasal) में पहली सिंचाई 30-35 दिनों के बाद पौधों की बढ़वार के लिए
दूसरी सिंचाई फूल आने पर, कलियों की अच्छी विकास के लिए होता है
तीसरी सिंचाई जब फली में दाना भरने लगे, तो हमे अवश्य करनी चाहिए
उर्वरक
सरसों की फसल (sarso ki fasal) में सड़ी हुई गोबर की खाद पहली जुताई के समय ही डाल देना चाहिए
रासायनिक खाद का उपयोग मिट्टी जांच के अनुसा में ही करें।
पौधों की बढ़वार के लिए यूरिया का प्रयोग कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर ही हम करते है
बुआई के 20-25 दिनों बाद सरसों की फसल में निराई-गुड़ाई अत्यंत आवश्यक होती है
सरसों में लगने वाले कीट व रोग और उनका प्रबंधन है
झुलसा रोग में
लक्षण : इस रोग में पत्तियों और फलियों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे दिखाई देने लगते है
उपचार: इसके उपचार के लिए फसल बोने के बाद 50 दिनों बाद रिडोमिल (0.25 प्रतिशत) का छिड़काव करें।
तना सड़न
लक्षण : इस रोग से सरसों के तनों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। इससे ग्रसित पौधे के अंदर से खोखले हो जाते हैं। इसे किसान पोला रोग के नाम से भी जाने जाते है
उपचार : इस रोग के नियंत्रण के लिए बीज को बाविस्टीन से 3 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित कर के बुआई करें।
आरा मक्खी कीट
Sarso Ki Kheti यह कीट अक्टूबर से दिसंबर तक फसल को ज्यादा हानि करक पहुंचाती है। इसके नियंत्रण के लिए डायमेथोएट 30 ई.सी. 1 लीटर/हेक्टेयर या मेलाथियॉन 50 ई.सी की 500 मिलीलीटर. मात्रा/हेक्टेयर 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करते है ।
सरसों की खेती में लागत और कमाई के
Sarso Ki Kheti लागत की बात करें तो इसमें अन्य फसलों की तुलना कम से कम लागत आती है। क्योंकि सरसों की फसल (sarson ki fasal) में पानी भी कम लगती है। इसकी खेती में किसानों को प्रति हेक्टेयर 30-40 हजार रुपये की लागत में आती है।
सरसों की खेती (sarso ki kheti) में गेंहू की फसल से ज्यादा मुनाफा भीं होता है। प्रति हेक्टेयर 20-20 क्विंटल सरसों का उत्पादन हो जाता है। इससे किसानों को शु्द्ध 1-1.5 लाख रुपए तक मुनाफा होजाता है। सरसों की मांग के अनुसार भारत में कम उत्पादन है। यही कारण है कि सरसों के तेल के दाम आसमान छूते रहे है
Sarso Ki Kheti आने वाले समय में देश में सरसों तेल की खपत और भी बढ़ने की संभावना होगी ऐसे में किसानों को सरसों की खेती (sarson ki kheti) से अच्छा मुनाफा हो जाता है
ये तो थी, सरसों की खेती करने की (sarson ki kheti in hindi) बात। लेकिन, ताजा खबर ऑनलाइन पर आपको कृषि एवं मशीनीकरण, सरकारी योजना और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर भी कई महत्वपूर्ण रूप से ब्लॉग्स मिलेंगे, जिनको पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं।
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