शलजम एक ऐसी सब्जी है, जो जड़ों से प्राप्त होती है। इसकी जड़ों में विटामिन सी पर्याप्त मात्रा में होती है। इसके पत्ते विटामिन ए, सी, के, फोलिएट और कैल्शियम का उच्च स्रोत होते हैं। इसका उपयोग सब्जी के साथ सलाद में भी बहुत किया जाता है।
शलजम का सेवन कई प्रकार की बीमारियों के लिए लाभप्रद माना जाता है। किसान इसकी खेती कर कम समय और कम लागत में बंपर कमाई कर सकते हैं।
तो आइए, इस ब्लॉग में शलजम की खेती(shalgam ki kheti) को बारे जानें।
शलजम की खेती के लिए आवश्यक जलवायु और मिट्टी Shalgam Ki Kheti
शलगम की खेती (shalgam ki kheti) के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। शलजम के लिए दोमट वाली और रेतीली मिट्टी सबसे अच्छी होती है। मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7 के मध्य होना चाहिए।
आपको बता दें, शलजम की खेती (shalgam ki kheti) खासतौर पर पंजाब, बिहार, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और तमिलनाडु में की जाती है।
शलजम की प्रमुख किस्में
पूसा स्वेती, लाल 4, पूसा कंचन, सफेद 4,गोल्डन, स्नोबल, पूसा चंद्रमा इस की उन्नत किस्म हैं।
शलजम की खेती में ध्यान रखने वाली महत्वपूर्ण बातें
शलजम की खेती(shalgam ki kheti) करने से पहले खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए।
इसके लिए खेत की पहली गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें।
उसके बाद गोबर की सड़ी हुई खाद या वर्मी कंपोस्ट डालें।
फिर तीन से चार जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करें।
इसकी बुवाई मेड़ पर की जाती है।
बुवाई के समय लाइन से लाइन की दूरी 30 से 40 सेमी रखें तथा कतार में बुवाई करें।
जब पौधे 10 से 15 दिन के हो जाएं तो पौधे की छटाई जरूर करें।
पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखें तथा बीज को 1 से 2 सेमी की गहराई पर बाएं।
शलजम की 1 एकड़ फसल तैयार करने के लिए 5 से 6 टन गोबर की खाद, 10 किलो यूरिया, 20 किलो डीएपी, 25 किलो पोटाश का इस्तेमाल करें।
25 से 30 दिन की फसल होने पर 1 एकड़ खेत में 25 किलोग्राम यूरिया और 5 किलोग्राम जायम डालें।
कंद बनते समय 1 एकड़ खेत में 1 किलो npk 0:52:34 और 500 ग्राम बोरोन को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
शलजम की फसल बुआई के 55 से 70 दिनों में तैयार हो जाती है।
शलजम की खेती में कमाई
शलजम एक ऐसी सब्जी है जिसकी मांग सालभर बनी रहती है। इसकी मांग फाइव स्टार होटलों से लेकर छोटे होटल और मंडी में बहुत रहती है। इसकी बिक्री आप सीधे उपभोक्ता तक करके अच्छी आमदनी ले सकते हैं। इसकी पैदावार 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
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