tarbooj ki kheti: तरबूज (Watermelon) को गर्मी के मौसम का सबसे प्रिय फल माना जाता है। गर्मी का मौसम आते ही हमें तरबूज की याद आने लगती है। भारत में इसे व्यापारिक तौर पर उगाया जाता है। जायद के मौसम में तरबूज की खेती (tarbooj ki kheti) मुख्य रूप से की जाती है। तरबूज में दो प्रमुख विटामिन होते हैं- विटामिन ए और सी। तरबूज में विटामिन ए भी कैरोटीनॉयड के रूप में मौजूद होता है।
तरबूज की खेती (tarbooj ki kheti) में कम समय में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। यही कारण है कि आजकल तरबूज की खेती का चलन बढ़ रहा है। इसमें खास बात यह है कि तरबूज की खेती (tarbooj ki kheti) में अन्य फलों के फसलों की तुलना में कम खाद, कम समय और कम पानी की आवश्यकता होती है।
अगर आप भी इसकी खेती करने के बारे में सोच रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए बेहद काम की साबित हो सकता है। इससे आप लाखों रुपये कमा सकते हैं।
तो आइए, दताजा खबर ऑनलाइन इस लेख में तरबूज की खेती कैसे करें? विस्तार से जानें।
इस लेख में आप जानेंगे
तरबूज की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
तरबूज की उन्नत किस्में
खेत की तैयारी
बुआई का समय
बुआई की विधि
सिंचाई प्रबंधन
तरबूज के पौधों में लगने वाले रोग एवं रोकथाम
तरबूज के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण
फलों की तुड़ाई
तरबूज की मार्केटिंग
तरबूज की पैदावार और लाभ
भंडारण
तरबूज की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
तरबूज की खेती (tarbooj ki kheti) के लिए गर्म और औसत आर्द्रता वाले क्षेत्र सर्वोत्तम होते हैं। इसके बीज के जमाव और पौधों के बढ़वार के समय लगभग 25 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान अच्छा रहता है। तो वहीं रेतीली दोमट मिट्टी में इसकी खेती सबसे अच्छी होती है। इसकी खेती नदियों के खाली स्थानों पर सबसे अच्छी होती है। मिट्टी का पीएचमान 6.5 से 7.0 से अधिक नहीं होना चाहिए।
तरबूज की उन्नत किस्में
Tarbooj Ki Kheti इसकी फसल से अच्छी उपज लेने के लिए किसानों को तरबूज की स्थानीय किस्मों का चयन करना चाहिए। नीचे कुछ उन्नत किस्मों के नाम बताए गए हैं।
सुगर बेबी
दुर्गापुर केसर
अर्को मानिक
दुर्गापुर मीठा
काशी पीताम्बर
पूसा वेदना
आशायी यामातो
डब्लू 19
न्यू हेम्पशायर मिडगट
खेत की तैयारी
Tarbooj Ki Kheti खेती की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से कर सकते हैं। खेत में पानी की मात्रा कम या ज्यादा नहीं होनी चाहिए इसके बाद नदियों के खाली स्थानों में क्यारियां बना लें। अब भूमि में गोबर की खाद को अच्छी तरह मिला दें। अगर रेत की मात्रा अधिक है, तो ऊपरी सतह को हटाकर नीचे की मिट्टी में खाद मिलाना चाहिए।
तरबूज की बुआई का समय
Tarbooj Ki Kheti उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में तरबूज की बुआई फरवरी में की जाती है, तो वहीं नदियों के किनारों पर खेती करते वक्त बुआई नवम्बर से मार्च तक करनी चाहिए। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च से अप्रैल में बुआई की जाती है।
तरबूज की बुआई की विधि
इसकी बुआई में तरबूज की किस्म और भूमि की उर्वरता के आधार पर दूरी तय किया जाता है। तरबूज की बुआई मेड़ों पर लगभग 2.5 से 3.0 मीटर की दूरी पर 40 से 50 सेंटीमीटर चौड़ी नाली बनाकर करें। इसके बाद नालियों के दोनों किनारों पर लगभग 60 सेंटीमीटर की दूरी पर 2 से 3 बीज बोएं।
अंकुरित होने के लगभग 10-15 दिन बाद एक जगह पर 1 से 2 स्वस्थ पौधों को छोड़ बाकी को निकाल देना उचित होता है।
सिंचाई प्रबंधन
Tarbooj Ki Khetiतरबूजे की खेती में सिंचाई बुआई के लगभग 10-15 दिन के बाद करनी चाहिए। खेती नदियों के कछारों में कर रहे हैं, तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है, क्योंकि पौधों की जड़ें बालू के नीचे से पानी को सोख लेता है।
तरबूज के पौधों में लगने वाले रोग एवं रोकथाम
कद्दू का लाल कीड़ा
तरबूज की खेती में यह कीड़ा पौधों में लगता है। इसके निदान के लिए आप कारब्रिल 50 डस्ट का छिड़काव खेतों में कर सकते हैं।
फल की मक्खी
तरबूज में फल मक्खी का रोग फल में लगता है। इसके कारण फल में छेद हो जाता है। इस रोग से बचाव के लिए तरबूज के पौधों पर मेलाथियान 50 ईसी या फिर एंडोसल्फान 35 ईसी का छिड़काव कर रोगी फलो को तोड़कर अलग कर दें।
बुकनी रोग
इस रोग में तरबूज की पत्तियों पर सफेद रंग का पाउडर दिखाई पड़ने लगता है जिससे पौधों में प्रकाश संश्लेषण नहीं हो पाता है। इस रोग से बचाने के लिए डायनोकेप 0.05% और गंधक 0.03% का छिड़काव करें।
डाउनी मिल्ड्यू
यह रोग पौधे की निचली सतह पर गुलाबी रंग के पाउडर के रूप में लगता है। जिससे फसल की उपज में कमी आती है। इस रोग से बचाव के लिए पौधों पर जाइनेब या मैंकोजेब का छिड़काव सप्ताह में 3 से 4 बार करें।
फ्यूजेरियम विल्ट
इस रोग से ग्रसित पौधा पूरी तरह से नष्ट होकर गिर जाता है। तरबूज के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए बीज रोपाई से पूर्व बीजों को कार्बेन्डाजिम से उपचारित कर लिया जाता है और खेतों में केप्टान 0.3% का छिड़काव करें।
तरबूज के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण
तरबूज की पहली गुड़ाई एक महीने बाद खेत में खरपतवार दिखाई देने पर की जाती है। गुड़ाई के बाद पौधों की जड़ो पर मिट्टी चढ़ा दें। इससे पौधा अच्छे से विकास करता है और पैदावार भी अधिक प्राप्त होती है। तरबूज के खेत में कम से कम तीन से चार गुड़ाई अवश्य करें।
तरबूज की मार्केटिंग
तरबूज की खेती (Watermelon Farming) अगर आप किसी छोटे से गांव से शुरू कर रहे हैं तो आपको इसे बेचने के लिए अपने गांव में लगने वाले बाजार यह आसपास की मंडियों में भी भेज सकते हैं। आप चाहें तो मंडी के किसी व्यापारी से भी संपर्क कर तरबूज को दूर की मंडी तक भी भेज सकते हैं जिसमें आपको अधिक मुनाफा भी मिल सकता है।
फलों की तुड़ाई
तरबूजे के फलों को बुआई से लगभग 2-3 महीने के बाद तोड़ सकते हैं। आपको पता होना चाहिए कि किस्म पर फलों का आकार और रंग निर्भर करता है। आप फलों को दबाकर भी देख सकते हैं कि अभी फल पका या कच्चा है। अगर फलों को दूर भेजना है, तो पहले ही फलों को तोड़ लेना चाहिए। फलों को डंठल से अलग करने के लिये तेज चाकू का उपयोग करें। इसके अलावा फलों को तोड़कर ठण्डे स्थान पर एकत्र करना चाहिए।
तरबूज की पैदावार और लाभ
तरबूज की पैदावार उन्नत किस्मों, खाद, उर्वरक, फसल की देखभाल पर निर्भर करती है।एक हेक्टेयर के खेत में तरबूज की उन्नत किस्मों से औसतन पैदावार लगभग 200 क्विंटल से 600 क्विंटल तक का उत्पादन प्राप्त कर सकते है | इसका बाज़ारी भाव 8 से 10 रूपए प्रति किलो होता है, जिससे किसान भाई इसकी एक बार की फसल से 2 से 3 लाख की कमाई आसानी से कर सकते हैं।
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