सीलबंद लिफाफा. सरकार को पसंद है. और सुप्रीम कोर्ट को नहीं. आज फिर ये बात साबित हुई, जब सुप्रीम कोर्ट ने एक मलयालम टीवी चैनल पर बैन लगाने के गृह मंत्रालय के फ़ैसले को रद्द कर दिया.
मामला केरल के टीवी चैनल मीडिया वन का है. इसका लाइसेंस जनवरी 2022 में रिन्यू होना था. लेकिन गृहमंत्रालय ने चैनल को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बता दिया. इस वजह से उसका लाइसेंस रिन्यू नहीं किया गया. और चैनल ऑफ़ एयर कर दिया गया. इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ चैनल ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया. हाईकोर्ट में उसकी अपील खारिज हो गई तो मामला सुप्रीम कोर्ट में आया.
अब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि चार हफ़्तों के भीतर मीडिया वन को लाइसेंस जारी किया जाए. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कोर्ट को एक सीलबंद लिफ़ाफ़े में मीडिया वन के ख़िलाफ दस्तावेज़ दिए थे. जिनमें कहा गया था कि इस चैनल के प्रोमोटर्स मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड के संबंध इस्लामी संगठन जमात-ए-इस्लामी हिंद से हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो दस्तावेज़ हमें दिए गए हैं उन्हें देखकर कोई भी समझदार व्यक्ति ये नहीं कह सकता कि इनको ज़ाहिर करने से राष्ट्रीय सुरक्षा ख़तरे में पड़ जाएगी.
हाईकोर्ट में क्या हुआ था?
सुप्रीम कोर्ट से पहले ये लड़ाई केरल हाईकोर्ट में लड़ी गई थी. हाईकोर्ट ने उन्हीं दस्तावेज़ों के आधार पर फ़ैसला किया कि लाइसेंस रिन्यू न करने का फ़ैसला ठीक था. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा था कि जब बात राज्य की सुरक्षा से जुड़ी होती है तो सरकार बिना कारण बताए लाइसेंस रिन्यू करने से इंकार कर सकती है. सरकार को ऐसा करने की पूरी छूट है. बैंच ने कहा कि उसके सामने पेश की गई फाइलों में इंटेलिजेंस ब्यूरो और अन्य जांच एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर पब्लिक ऑर्डर या राज्य की सुरक्षा को प्रभावित करने वाले कुछ पहलू हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा? चैनल का लाइसेंस बहाल करते हुए
इंडियन एक्स्प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में चैनल के प्रमोटरों ने कहा कि उन्हें खुद का बचाव करने का मौका नहीं दिया गया. क्योंकि गृहमंत्रालय ने लाइसेंस को रिन्यू करने से मना किया. और राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए सीलबंद लिफ़ाफा हाईकोर्ट को दिया गया था. प्रमोटरों ने आगे तर्क दिया कि फ्रीडम ऑफ स्पीच में, फ्रीडम ऑफ प्रेस भी आता है. और फ्रीडम ऑफ प्रेस को आप आर्टिकल 19(2) के तहत ही हटा सकते हैं. लेकिन चैनल ने ऐसे किसी भी प्रोग्राम कोड का उल्लघंन नहीं किया है.
हाईकोर्ट में जिस तरह सील्ड कवर में जानकारी पेश की गई, सुप्रीम कोर्ट ने उसकी आलोचना की. और कहा कि जिस तरह केंद्र ने सेक्योरिटी क्लीयरेंस न देने के पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा का कारण दे दिया, वो सही नहीं था.
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि हमने माना है कि अदालतों के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को परिभाषित करना व्यवहारिक नहीं है. हम यह भी मानते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा की बातों को हम हल्के में नहीं ले सकते हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा की बातों का दावा करने से पहले कोई फ़ाइल होनी चाहिए. इस केस में नोट किया गया कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है. और इसके ज़िक्र भर से नागरिकों के अधिकार नहीं छीने जा सकते.
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा,
‘जब जमात-ए-इस्लामी हिंद एक प्रतिबंधित संगठन नहीं है, तो राज्य के लिए यह तर्क देना ठीक नहीं है कि संगठन के साथ संबंध रखने वाले चैनल राज्य की सुरक्षा के लिए हानिकारक हैं.’
सुप्रीम कोर्ट सीलबंद लिफाफों पर पहले भी सख्त रहा है
नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने सीलबंद लिफाफों में जवाब देने की प्रथा को ‘खतरनाक’ बताया था. कहा था कि इससे न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं रहती. फरवरी 2023 में जब केंद्र ने हिंडनबर्ग मामले में जांच समिति के लिए सुझाव बंद लिफाफे में देने चाहे, तब भी सुप्रीम कोर्ट ने इससे इनकार किया था. फिर मार्च 2023 में वन रैंक वन पेंशन मामले में जब अटॉर्नी जनरल ने सीलबंद लिफाफे में केंद्र का जवाब दाखिल किया था, तब भी सुप्रीम कोर्ट ने उसे स्वीकार नहीं किया था.
इसका मतलब ये नहीं है कि कोर्ट ने कभी सीलबंद लिफाफे स्वीकार नहीं किए. बिलकुल किए हैं. लेकिन हाल के दिनों में कोर्ट का ज़ोर इस बात पर रहा है कि वो कारण भी स्थापित किया जाए, जिसके तहत जानकारी खुले में नहीं, बल्कि लिफाफे में बंद करके दी जा रही है.
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